असंयमित जीवन बिना ब्रेक के गाड़ी के सामान है: आचार्य श्री 108 सुबल सागर जी महाराज

असंयमित जीवन बिना ब्रेक के गाड़ी के सामान है: आचार्य श्री 108 सुबल सागर जी महाराज

Life is Like a Car

Life is Like a Car

Life is Like a Car: चंडीगढ़ दिगम्बर जैन मंदिर में पर्युषण महापर्व पर लोगों के मन में भक्ति, आराधना, साधना का उत्साह निरंतर बढ़ता ही जा रहा है यह पर्व का छटवा दिन उत्तम संयम का दिवस है परम पूज्य आचार्य श्री सुबलसागर जी महाराज ने आज धर्म सभा को संबोधित करते हुआ कहा कि जैसे बिना ब्रेक की गाड़ी होती है अर्थात् गाड़ी में ब्रेक न हो तो गाड़ी का एक्सीडेंट होना निश्चित है उसी प्रकार जिस व्यक्ति के जीवन में संयम नहीं वह भी दुर्गति का ही पात्र होता है बिना संयम साधना के मनुष्य का जीवन पशु के समान है। आहार, भय, मैथुन और परिग्रह ऐ चार संज्ञाएँ पशुओं के अंदर भी है। इनसे मनुष्य की कोई विशेषता नहीं है । इन्द्रियों के विषयों से विरक्ति अर्थात् इन्द्रियों को उनके विषयों में जाने से रोक देना ही संयम है।

चरणों की पूजा होती है मस्तक की नहीं, क्योंकि आचरण प्रधान है। संयम को धारण करने से चारित्र बनता है और चारित्र वान मनुष्य की तो देव भी पूजा करते है। जिस मनुष्य का मन जीवों की दया से भीगा हुआं है जो इर्या,-भाषा-एषणा आदि पांच समितियों का पालन करने वाला है. ऐसे साधु के जो षट्काय के जीवों की हिंसा तथा इन्द्रियों के विषयों का त्याग है, उसी को संयम धर्म कहते हैं।

मनुष्य की इच्छाएँ अनंत होती है यही उसके दुःख का कारण बनती है। इस माया रुपी संसार में मन को स्थिर रखने के लिए कामनाओं पर नियंत्रण जरूरी है और इन्द्रियों पर यही नियंत्रण संयम है। असंयमित जीवन बिना ब्रेक के वाहन जैसा खतरनाक है। संयम सुख, शांति का द्वार है, संयम मंच व माला का विषय नहीं, आत्ममंच पर उतरने का विषय है, संयम पूर्ण जीवन ही आनंदित जीवन होता है। तन का संयम चंचलता को मिटाता है, वचन का संयम अशुभ वचनों से बचाता है और मन का संयम अशुभ सोच-विचार से रक्षा करता है इन तीनों 'का संयम ही एक अच्छा इंसान बनाती है। यह जानकारी श्री धर्म बहादुर जैन जी ने दी।

आज पाठ के दौरान गाणिवर्य डॉ. श्री इन्द्रजीत विजय जी महाराज साहव आदिठाणा के पावन सानिध्य में श्री श्वेताम्बर जैन मंदिर सेक्टर 28 से भारी संख्या में भक्तजन श्री जी की भव्य पालकी यात्रा लेकर पहुंचें जिनका श्री दिगम्बर जैन सोसाइटी के सदस्यों ने तिलक लगाकर स्वागत किया तथा महाराज साहब गाणिवर्य डॉ. श्री इन्द्रजीत विजय जी महाराज साहब आदिठाणा दोनों संप्रदाय के इस मिलन को देखकर बहुत प्रसन्न हुए और आचार्य श्री 108 सुबल सागर जी महाराज ने भी दोनों सम्प्रदायों को अपना आशीर्वाद प्रदान किया तथा अपने प्रवचनो में कहा कि यह जैन एकता चंडीगढ़ में ही नही बल्कि पूरे देश में भी इसी प्रकार बनी रहे। यह जानकारी बाल ब्र. गुंजा दीदी ने दी।

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